तुम्हारे पास थोड़ा-सा वक़्त है…
अगर नहीं तो निकालो थोड़ी फ़ुर्सत
याद करो अपने उन तमाम पत्रों को
जिससे बहुत कुछ बचाने की बात करते रहे हो तुम

बताओ दिल पर हाथ रखकर सच-सच
तुमने क्या-क्या बचाया अपने भीतर
संकट के इस दौर में…
बचा सके मेरा विश्वास
मेरी तस्वीर, मेरे ख़त, मेरी स्मृतियाँ
मेरी रिंग, मेरी डायरी, मेरे गीत
मेरा प्यार, मेरा सम्मान, मेरी इज़्ज़त
मेरा नाम, मेरी शोहरत, मेरी प्रतिष्ठा?
निभा सके अपना वचन, अपनी क़समें
लड़ सके अपने अस्तित्व और इज़्ज़त के लिए
अपने वादे, अपने विश्वास की रक्षा के लिए
लड़ सके वहाँ-वहाँ उससे
जहाँ-जहाँ जिससे
लड़ने की ज़रूरत थी
कर सके विरोध
जहाँ विरोध की पूरी सम्भावना थी?

माँगा है कभी तुमने अपने आपसे उसका जवाब
सवाल करते रहे हो तुम एक पुरुष होकर, हज़ारों पुरुषों से
आलिंगन, स्पर्श, चुम्बन बचा सके तुम
जिसके दूर-दूर तक बचे रहने की कोई उम्मीद नहीं
ओैर न ही विश्वास दिलाने को पुख़्ता सबूत?

बचा पाए अपने भीतर, थोड़ी सी पवित्र जगह
जहाँ पुनर्स्थापित कर सको अपनी खोयी देवी को?

अभी-अभी यह सब पढ़ते
किसी चील के झपटदार चंगुल से
बचा सकोगे इसे
जिसके एक-एक शब्द
ख़ून, आँसू, नफ़रत और प्रेम के
गाढ़े घोल में डूबी है।

कुछ भी तो बचा नहीं सके तुम
और तो और तन-मन भी बचा नहीं सके तुम
जिस पर थोड़ा-सा भी गर्व करके
ख़ुद को कर सकूँ तैयार
तुम्हारी वापसी पर…

निर्मला पुतुल की कविता 'तुम्हें आपत्ति है'

Book by Nirmala Putul:

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निर्मला पुतुल
निर्मला पुतुल (जन्मः 6 मार्च 1972) बहुचर्चित संताली लेखिका, कवयित्री और सोशल एक्टिविस्स्ट हैं। दुमका, संताल परगना (झारखंड) के दुधानी कुरुवा गांव में जन्मी निर्मला पुतुल हिंदी कविता में एक परिचित आदिवासी नाम है। निर्मला ने राजनीतिशास्त्र में ऑनर्स और नर्सिंग में डिप्लोमा किया है।

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