‘Prem’, a poem by Upma Richa
किताब की जिल्द में
खोया हुआ गुलाब,
किसी ख़त में सोयी हुई तितली,
पसीने की सुगंध से सराबोर रुमाल,
जहाँ-तहाँ लिखकर
मिटाये हुए कुछ अक्षरों के सबूत,
और उखड़ते प्लास्टर के बीच
सहसा उगे
किसी दरख़्त से सपने
नहीं मिटने देते
तुम्हारी यादें…
हाँ, विस्मृति के किनारे
हारकर नहीं बैठता प्रेम,
भरता है भरपूर
अपना घर,
अपना आँगन,
अपना आसमान….!
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