Tag: माँ
यह कदम्ब का पेड़
यह कदम्ब का पेड़ | Yah Kadamb Ka Ped
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥
ले...
पृथ्वी
1
पृथ्वी!
एक बुढ़िया की
मटमैली-सी गठरी है
जो भरी हुई है
कौतूहल से
उम्मीद से
असमंजस से
प्रेम से।
जिसमें कुछ न कुछ खोजने के बाद भी
हर बार
बचा ही रह जाता है
कुछ...
कविताएँ : जुलाई 2020
माँ ने नहीं देखा है शहर
गुज़रता है मोहल्ले से
जब कभी कोई फेरीवाला
हाँक लगाती है उसे मेरी माँ
माँ ख़रीदती है
रंग-बिरंगे फूलों की छपाई वाली चादर
और...
माता-विमाता
पंद्रह डाउनलोड गाड़ी के छूटने में दो-एक मिनट की देर थी। हरी बत्ती दी जा चुकी थी और सिग्नल डाउनलोड हो चुका था। मुसाफ़िर अपने-अपने...
पेटपोंछना
दराज़ में रखी नींद की गोलियों से भरी शीशी को मैंने फिर से देखा, थोड़ी देर देखता रहा... फिर धीरे से दराज़ बंद कर दी।...
रात
सबसे पहले
शुरू होता है माँ का दिन
मुँह अंधेरे
और सबके बाद तक
चलता है
छोटी होती हैं
माँ की रातें नियम से
और दिन
नियम से लम्बे
रात में दूर तक...
उसकी माँ
दोपहर को ज़रा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा धीरे-धीरे सिगार पी रहा था और बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय...
स्वप्न के घोंसले
स्वप्न में पिता घोंसले के बाहर खड़े हैं
मैं उड़ नहीं सकती
माँ उड़ चुकी है
कहाँ
कुछ पता नहीं
मेरे आगे किताब-क़लम रख गया है कोई
और कह गया...
माँ का भूत
पुत्र बीमार हो या पति या फिर घर में कोई और। माँ का छोटा-सा पर्स खुले दिल से अपना मुँह खोलकर टेबल पर पसर...
नीली बनारसी साड़ी
एक लड़की के बचपन की सबसे मधुर स्मृतियों में एक स्मृति उसकी माँ के सुन्दर-सुन्दर कपड़े और साड़ियों की स्मृति और मेरी स्मृति में...
माँ
माँ
पुराने तख़्त पर यों बैठती हैं
जैसे वह हो सिंहासन बत्तीसी।
हम सब
उनके सामान नीची चौकियों पर टिक जाते हैं
या खड़े रहते हैं अक्सर।
माँ का कमरा
उनका...
एकमात्र रोटी, तुम्हारे साथ जीवन
एकमात्र रोटी
पाँचवीं में पढ़ता था
उमर होगी कोई
दस एक साल मेरी।
एक दिन स्कूल से आया
बस्ता पटका, रोटी ढूँढी
घर में बची एकमात्र रोटी को
मेरे हाथ से...