Tag: माँ

Sunset

माँ की बिंदी

माँ आज से बिंदी नहीं लगायेंगी, पापा के जाने के बाद से कोई और शृंगार भी न करें अब शायद। मैंने जाना था, घर के दक्खिन से उगते...

माँ

"मैं नहीं जानता क्योंकि नहीं देखा है कभी- पर, जो भी जहाँ भी चिंता भरी आँखें लिये निहारता होता है दूर तक का पथ- वही, हाँ, वही है माँ!"
Mother Child

ममता

माँ की आँखें वो निश्छल, निर्गुण-सी आँखें आँख कहाँ होती है वो होती है एक पात्र जलमग्न अविरल जिसमें बहती है ममतामयी धारा और छलक आती है पल में मोती-सी पावन बूँदें जरा...
Subhadra Kumari Chauhan

मेरा नया बचपन

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद कैसे भूला जा...
Giriraj Kishore

माँ आकाश है!

"आख़िरकार तुम मेरी उस एक ग़लती की कब तक सजा देते रहोगे। तुम्हारा मर्दाना अहंकार अपना बदला किस-किस तरह ले रहा है। मर्द की बात पत्नी एक बार मानने में कोताही कर दे तो वह रूप बदल-बदल कर उसे डसता है।" मर्द औरत को आज़ादी भी नाप-तोल कर देता है.. और दिखाने की कोशिश करता है कि तुम्हें आज़ादी तो पूरी है लेकिन यह लक्ष्मण रेखा जो मैंने खींच दी है उसे पार करोगी तो नुक्सान तुम्हारा ही है.. और उस नुक्सान को साबित करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता.. इसी बात को प्रकट करती है गिरिराज किशोर की यह कहानी.. पढ़िए!
Woman with daughter, Mother

अब माँ शान्त है

मुझे लोगों पर बहुत प्यार आया ज़रा संकोच न हुआ मैंने प्यार बरसा दिया अब मन शान्त है मुझे लोगों पर बहुत ग़ुस्सा आया ज़रा संकोच हुआ मैंने माँ पर उतार दिया अब...
Kahlil Gibran

माँ बनने का सुख

"जिस दर्द को तुम्हारी पड़ोसिन झेल रही है, वह अत्यन्त सुन्दर एक मोती है।"
Mother, Son, Kid, Baby, Child

माँ-बेटे

'माँ-बेटे' - भुवनेश्वर चारपाई को घेरकर बैठे हुए उन सब लोगों ने एक साथ एक गहरी साँस ली। वह सब थके-हारे हुए खामोश थे।...
Woman with tied child, Mother, Kid

‘माँ’ के लिए कुछ कविताएँ

'माँ' - मोहनजीत मैं उस मिट्टी में से उगा हूँ जिसमें से माँ लोकगीत चुनती थी हर नज्म लिखने के बाद सोचता हूँ- क्या लिखा है? माँ कहाँ इस...
premchand

माँ

"करूणा द्वार पर आ बैठती और मुहल्ले-भर के लड़कों को जमा करके दूध पिलाती। दोपहर तक मक्खन निकालती और वह मक्खन मुहल्ले के लड़के खाते। फिर भाँति-भाँति के पकवान बनाती और कुत्तों को खिलाती। अब यही उसका नित्य का नियम हो गया। चिड़ियाँ, कुत्ते, बिल्लियाँ चींटे-चीटियाँ सब अपने हो गये। प्रेम का वह द्वार अब किसी के लिए बन्द न था। उस अंगुल-भर जगह में, जो प्रकाश के लिए भी काफी न थी, अब समस्त संसार समा गया था।"
Joy Goswami

माँ और बेटी

'Maa Aur Beti', a poem by Joy Goswami एक रास्ता जाता है उनींदे गाँवों तक एक रास्ता घाट पार कराने वाली नाव तक एक रास्ता पंखधारी देह...
Kunwar Bechain

‘घर, माँ, पिता, पत्नी, पुत्र, बंधु!’ – कुँवर बेचैन की पाँच कविताएँ

कुँअर बेचैन हिन्दी की वाचिक परम्परा के प्रख्यात कवि हैं, जो अपनी ग़ज़लों, गीतों व कविताओं के ज़रिए सालों से हिन्दी श्रोताओं के बीच...
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