‘अपरिचित उजाले’ से

तुम जानते हो
मैंने तुम्हें प्यार किया है
साहस और निडरता से
मैं उन सबके सामने खड़ी हूँ
जिनकी आँखें
हमारे सम्बन्धों पर प्रश्नवाचक मक्खियों की तरह मँडराती हैं।

मैं उन सभी लोगों की घृणा से
टकरायी हूँ—जो अपनी व्यवस्था में
अत्यन्त निर्मम थे
जिन्होंने मेरे
उल्लसित मन को
काँच की किरचों जैसा
पीस डाला था
जो परम शक्तिशाली थे
जिनके पास
सम्बन्धों के नाम पर सिर्फ़ चौखटे थे
और समाज के नाम पर एक अमूर्त भीड़
हे मेरे प्रभु
उनसे मुझे कभी
डर न लगा…
यों प्यार करना कितना मुश्किल होता है
अँधेरे रेगिस्तान में
गुलाब
झुलसने के लिए बस छोड़ दिए जाते हैं

मेरे प्यार को नकारकर
उन्होंने तुम्हें भी
बड़ा कहाँ किया?

प्रभा खेतान की कविता ‘मेरे और तुम्हारे बीच’

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प्रभा खेतान
(1 नवम्बर 1942 - 20 सितम्बर 2008)प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कवयित्री, नारीवादी चिंतक व समाज सेविका।

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