तुम
हमारी लिखने वाली उँगलियों की
शमएँ गुल कर दो
हमारे लफ़्ज़
दीवारों में चुनवा दो
हमारे नाम के उपले बनाओ
अपनी दीवारों पे थोपो
अपने चूल्हों में जला दो
सब तुम्हारे बस में है
हम जानते हैं, मानते हैं
सब तुम्हारे बस में है
लेकिन
हमारी सोच पर ताला लगाते और
अपनी चाबियों के भारी गुच्छे में
ये चाबी डाल के
मुट्ठी दबा लेते
कहीं तह में समुंदर की उछाल आते
तुम्हारे बस में ये कब है??

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