जब बच्चे लम्बी साँस लेकर
मारते हैं किलकारियाँ
तब गौरैया की तरह उड़ता है माँ का मन
जब बच्चों की कोमल हथेलियाँ
छूती हैं मिट्टी
तब बन जाते हैं घरौंदे
जब बच्चों की उँगलियाँ
थामती हैं खड़िया
तब देश की पाटी पर उग आती है घास
जब बच्चे करते हैं जी-भर प्रेम
तब झड़ते हैं शरमाकर
रोहिड़े के फूल
जब बच्चे लहूलुहान पृथिवी पर
बरसाते हैं चुग्गा
तब हिय में हिलोरे लेती है आज़ादी
जब बच्चों के पाँवों में आ जाते हैं बाबा के जूते
और पढ़-लिखकर करते हैं
हुक्मरानों से सवाल
हक़ की बात
तब वे कवि हो जाते हैं या देशद्रोही!
संदीप निर्भय की कविता 'जिस देश में मेरा भोला गाँव है'