Tag: Adarsh Bhushan
कौन स्तब्ध है?
स्तब्धता एक बेजोड़ निकास है—
सदियों से मुलाक़ातों, हादसों और
प्रव्रजनों को देखते हुए हम स्तब्ध खड़े हैं
नदियाँ देखकर बाँध स्तब्ध खड़े हैं
गाड़ियाँ देखकर पुल
तुम्हें देखकर...
रुदन की व्यंजनाएँ
मैं कभी नहीं रोया
मुझे किसी ने रोते हुए देखा भी नहीं
रुदन साहस माँगता है
मैं अपनी आँखों को
हमेशा कातर असहजता के
ढाई इंच नीचे की स्मिति से
ढाँपता रहा
जब...
अमलदारी
इससे पहले कि
अक्षुण्णताओं के रेखाचित्र ढोते
अभिलेखागारों के दस्तावेज़ों में
उलटफेर कर दी जाए,
उन सारी जगहों की
शिनाख़्त होनी चाहिए
जहाँ बैठकर
एक कुशल और समृद्ध समाज की
कल्पनाओं के...
मनुष्यता की होड़
ग्रीष्म से आकुल सबसे ज़्यादा
मनुष्य ही रहा
ताप न झेला गया तो
पहले छाँव तलाशी
फिर पूरी जड़ से ही छाँव उखाड़ ली
विटप मौन में
अपनी हत्या के
मूक साक्षी...
अंतःकरण
एक लेखक
जो बस लिखता है
किसी से कुछ नहीं कहता
खीझता है और
लिखी हुई ईप्साओं को फाड़कर
वर्जनाओं के कोने में फेंक देता है
एक पंक्ति से दूसरी...
ढोंग
कविताओं को किसी
आडम्बर की आवश्यकता नहीं
आकाश बादलों से प्रेम के लिए
धरा बारिश के उन्माद के लिए
निशा तारिकाओं से अनुरक्ति के लिए
विटप पखेरुओं से हेत...
दुत्कार
जेठ का ताप
झेलते हुए भी जिन वक्षों का
क्षीर नहीं सूखा था,
सरकारी वायदों के
पूरा होने के इन्तज़ार में
शोणित हो चले हैं
पिघलते कोलतार पर
देग नापते हुए
जिनकी...
पेरुमल मुरुगन की कविताएँ
Poems: Perumal Murugan
Book: 'Songs Of A Coward'
अनुवाद: आदर्श भूषण
अन्त्येष्टि की ख़बर
उस दिन, सड़क शमशान में तब्दील हो गयी
जो आए थे चिता को अग्नि...
कविताओं पर रिश्वत का आरोप है
कुछ मेरी कविताओं पर
कुछ तुम्हारी पर
जिन कविताओं में
शेष समर की विजय पताका
फहरा दी गई
दारुण साम्राज्यों ने
कवियों से लिखवाए अपने
ध्वजवंदन के छन्द
जिन कविताओं ने टेक दिए...
अन्तर्विरोध
शहर में रहकर
लिखी जाती रहीं
गाँव पर कविताएँ,
चमड़ी का साहित्य
कभी नहीं सहेज पाया
विभेद के उलाहने
भूख और नींद
कलह मचाते रहे
भीड़ भरी बस्तियों में,
मेड़ पर खड़ा किसान
घूरता...
सामर्थ्य
संसार उतना ही
जितना मैं चलकर
अपने पग से नाप सकूँ
प्रेम उतना ही
जितना मेरी हृदय से
जुड़ी धमनियों और
शिराओं में बहता हो
आसक्ति उतनी ही
जितनी सम्प्रेषित की
जा सके
शब्दों...
भूख से नहीं तो प्रतीक्षा से मरो
आसमान की ओर तकती निगाहें
रोटी माँगती हैं
मगर किससे?
छत माँगती हैं
मगर किससे?
हक़ माँगती हैं
मगर किससे?
सुलेमानी ज़ायक़े वाला
अकबरी फ़रमान जारी होता है,
वायरस से नहीं तो भूख से मरो
भूख...