Tag: Adarsh Bhushan

Adarsh Bhushan

कौन स्तब्ध है?

स्तब्धता एक बेजोड़ निकास है— सदियों से मुलाक़ातों, हादसों और प्रव्रजनों को देखते हुए हम स्तब्ध खड़े हैं नदियाँ देखकर बाँध स्तब्ध खड़े हैं गाड़ियाँ देखकर पुल तुम्हें देखकर...
Adarsh Bhushan

रुदन की व्यंजनाएँ

मैं कभी नहीं रोया मुझे किसी ने रोते हुए देखा भी नहीं रुदन साहस माँगता है मैं अपनी आँखों को हमेशा कातर असहजता के ढाई इंच नीचे की स्मिति से ढाँपता रहा जब...
Adarsh Bhushan

अमलदारी

इससे पहले कि अक्षुण्णताओं के रेखाचित्र ढोते अभिलेखागारों के दस्तावेज़ों में उलटफेर कर दी जाए, उन सारी जगहों की शिनाख़्त होनी चाहिए जहाँ बैठकर एक कुशल और समृद्ध समाज की कल्पनाओं के...
Adarsh Bhushan

मनुष्यता की होड़

ग्रीष्म से आकुल सबसे ज़्यादा मनुष्य ही रहा ताप न झेला गया तो पहले छाँव तलाशी फिर पूरी जड़ से ही छाँव उखाड़ ली विटप मौन में अपनी हत्या के मूक साक्षी...
Adarsh Bhushan

अंतःकरण

एक लेखक जो बस लिखता है किसी से कुछ नहीं कहता खीझता है और लिखी हुई ईप्साओं को फाड़कर वर्जनाओं के कोने में फेंक देता है एक पंक्ति से दूसरी...
Adarsh Bhushan

ढोंग

कविताओं को किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं आकाश बादलों से प्रेम के लिए धरा बारिश के उन्माद के लिए निशा तारिकाओं से अनुरक्ति के लिए विटप पखेरुओं से हेत...
Poverty, Poor

दुत्कार

जेठ का ताप झेलते हुए भी जिन वक्षों का क्षीर नहीं सूखा था, सरकारी वायदों के पूरा होने के इन्तज़ार में शोणित हो चले हैं पिघलते कोलतार पर देग नापते हुए जिनकी...
Songs of a Coward - Perumal Murugan

पेरुमल मुरुगन की कविताएँ

Poems: Perumal Murugan Book: 'Songs Of A Coward' अनुवाद: आदर्श भूषण अन्त्येष्टि की ख़बर उस दिन, सड़क शमशान में तब्दील हो गयी जो आए थे चिता को अग्नि...
Adarsh Bhushan

कविताओं पर रिश्वत का आरोप है

कुछ मेरी कविताओं पर कुछ तुम्हारी पर जिन कविताओं में शेष समर की विजय पताका फहरा दी गई दारुण साम्राज्यों ने कवियों से लिखवाए अपने ध्वजवंदन के छन्द जिन कविताओं ने टेक दिए...
Adarsh Bhushan

अन्तर्विरोध

शहर में रहकर लिखी जाती रहीं गाँव पर कविताएँ, चमड़ी का साहित्य कभी नहीं सहेज पाया विभेद के उलाहने भूख और नींद कलह मचाते रहे भीड़ भरी बस्तियों में, मेड़ पर खड़ा किसान घूरता...
Adarsh Bhushan

सामर्थ्य

संसार उतना ही जितना मैं चलकर अपने पग से नाप सकूँ प्रेम उतना ही जितना मेरी हृदय से जुड़ी धमनियों और शिराओं में बहता हो आसक्ति उतनी ही जितनी सम्प्रेषित की जा सके शब्दों...
Adarsh Bhushan

भूख से नहीं तो प्रतीक्षा से मरो

आसमान की ओर तकती निगाहें रोटी माँगती हैं मगर किससे? छत माँगती हैं मगर किससे? हक़ माँगती हैं मगर किससे? सुलेमानी ज़ायक़े वाला अकबरी फ़रमान जारी होता है, वायरस से नहीं तो भूख से मरो भूख...
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