Tag: Labour
पैदल चलते लोग
तमाम दृश्यों को हटाता, घसीटता और ठोकर मारता हुआ
चारों तरफ़ एक ही दृश्य है
बस एक ही आवाज़
जो पैरों के उठने और गिरने की हुआ करती...
बस यही है पाप
पटरियों पर रोटियाँ हैं
रोटियों पर ख़ून है,
तप रही हैं हड्डियाँ,
अगला महीना जून है।
सभ्यता के जिस शिखर से
चू रहा है रक्त,
आँखें आज हैं आरक्त,
अगणित,
स्वप्न के संघर्ष...
मरेंगे साथ, जियेंगे साथ
पगडण्डी, पतली-दुबली लजीली। उस पर हमारे पैरों का बोझ। हरियाली में जाकर वह लजवंती खो गई। छेवड़िया ऊँघ रहा था। हवा सनसना रही थी।...
ऊँचाइयाँ, विज्ञान की भावना, भूख
ऊँचाइयाँ
गुरुत्वाकर्षण
पदार्थो के
गिरने का
अद्वितीय नियम है।
हर चीज़ फिर
गिरती है,
मज़दूर की तरह,
नीचे की तरफ़।
पटरियों पर
चौड़े हाईवे पर
नदियों के भीतर
गटर के अन्दर
कारख़ानों में
खदानों में
पाखानों में,
पर उसके लिए
एक पूर्वशर्त है
'ऊँचाइयाँ'
इमारतों...
रोटी की तस्वीर
यूँ तो रोटी किसी भी रूप में हो
सुन्दर लगती है
उसके पीछे की आग
चूल्हे की गन्ध और
बनाने वाले की छाप दिखायी नहीं देती
लेकिन होती हमेशा रोटी के...
बीस-बीस की बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा की रात
चीथड़े और लोथड़ों के बीच
पूरे चाँद-सी गोल रोटियों की फुलकारियाँ
उन मज़दूरों के हाथों का हुनर पेश कर रही थीं
जो अब रेलवे...
महज़ मज़दूर ही तो थे
शहर लॉकडाउन, सरकारें ट्वीटर पर
मीडिया अपने आक़ाओं के यशोगान में
सड़क पर पुलिस अपनी नौकरियाँ बचाने में
उनके पास रोज़गार नहीं बचे थे
उन्हें भूख लगती थी
गर्भवती...
पत्थर
मेरी क़ब्र का पत्थर
मेरे पेट पर रख देना
तब भरा दिखेगा पेट मेरा
और कोई हँसकर नहीं
कह पाएगा कि
'लाश का पेट ख़ाली है!'लोग बहुत ग़ौर से
देखते है लाशों...
क्षणिकाएँ : मदन डागा
कुर्सी
कुर्सी
पहले कुर्सी थी
फ़क़त कुर्सी,
फिर सीढ़ी बनी
और अब
हो गई है पालना,
ज़रा होश से सम्भालना!
भूख से नहीं मरते
हमारे देश में
आधे से अधिक लोग
ग़रीबी की रेखा के...
प्रवासी मज़दूर
मैंने कब माँगा था तुमसे
आकाश का बादल
धरती का कोना
सागर की लहर
हवा का झोंका
सिंहासन की धूल
पुरखों की राख
या अपने बच्चे के लिए दूधयह सब वर्जित...
परमानन्द रमन की कविताएँ
आपदा प्रबन्धन
कहीं किसी कोने में
जीवन यात्रा के भी
हो एक आपातकालीन खिड़कीआपदाओं के शिकार
कुछ टूटे/हारे रिश्ते
पहुँच नहीं पाते
अपने अन्तिम पड़ाव तक।
आवेदन
नहीं था कोई कॉलम
किसी भी...
कुमार मंगलम की कविताएँ
रात के आठ बजे
मैं सो रहा था उस वक़्त
बहुत बेहिसाब आदमी हूँ
सोने-जगने-खाने-पीने
का कोई नियत वक़्त नहीं है
ना ही वक़्त के अनुशासन में रहा हूँ कभीमैं सो...