चकमक, जनवरी 2021 अंक से

कविता: सुशील शुक्ल 

नीम तेरी डाल
अनोखी है
लहर-लहर लहराए
शोखी है

नीम तेरे पत्ते
बाँके हैं
किसने तराशे
किसने टाँके हैं

नीम तेरे फूल
बहुत झीने
भीनी ख़ुशबू
शक्ल से पश्मीने

नीम तेरी निम्बोली पीली
भीतर जाके
धूप हुई गीली

नीम तेरा हरा निराला है
हरा तो बस इक
तेरे वाला है

नीम तेरी छाँव सुहानी है
एक टुकड़ा दे-दे
माँ को पहुँचानी है…

‘चकमक’ के जनवरी 2021 अंक से साभार। ‘चकमक’ का सब्सक्रिप्शन इस लिंक से लिया जा सकता है।

पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...