जयशंकर प्रसाद के उद्धरण | Quotes by Jaishankar Prasad

 

 

“धर्म जब व्यापार हो गया और उसका कारबार चलने लगा, फिर तो उसमें हानि और लाभ दोनों होगा।” (विशाख)


“दो दिन के जीवन में मनुष्य मनुष्य को यदि नहीं पूछता, स्नेह नहीं करता, तो फिर वह किसलिए उत्पन्न हुआ है?” (तितली)


“सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने हृदय में डुबा नहीं सकता।”


“निष्फल क्रोध का परिणाम होता है, रो देना।”


“इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।”


“कविता करना अत्यंत पुण्य का फल है।”


“स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।”


“अधिक हर्ष और उन्नति के बाद ही अधिक दुःख और पतन की बारी आती है।”


“असम्भव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।”


“मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है।”


“नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।”


“माँ के ममत्व की एक बूँद अमृत के समुद्र से ज़्यादा मीठी है।”


“पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।”


“कष्ट हृदय की कसौटी है।”


“पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान।”


“स्त्रियों का हृदय, अभिलाषाओं का, संसार के सुखों का क्रीड़ा स्थल है।”


‘विजया’ से 

“अत्याचारी समाज ‘पाप’ कहकर कानों पर हाथ रखकर चिल्लाता है; वह पाप का शब्द दूसरों को सुनायी पड़ता है, पर वह स्वयं नहीं सुनता।”

मनोहर श्याम जोशी के उद्धरण

Book by Jaishankar Prasad:

जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937), हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया।