Tag: कोरोना
शिव कुशवाहा की कविताएँ
दुनिया लौट आएगी
निःशब्दता के क्षणों ने
डुबा दिया है महादेश को
एक गहरी आशंका मेंजहाँ वीरान हो चुकी सड़कों पर
सन्नाटा बुन रहा है एक भयावह परिवेश
एक...
मैं ईश्वर की हत्या करना चाहता हूँ
बचपन से सिखाया गया
ईश्वर विज्ञान से परे है
ईश्वर के पास हर मर्ज़ की दवा हैअभी, जब ईश्वर की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है
तो ईश्वर क्वारेंटीन हो...
हम सब लौट रहे हैं
हम सब लौट रहे हैं
ख़ाली हाथ
भय और दुःख के साथ लौट रहे हैं
हमारे दिलो-दिमाग़ में
गहरे भाव हैं पराजय के
इत्मीनान से आते समय
अपने कमरे को भी...
कविताएँ – मई 2020
कोरोना के बारे में जानती थी दादी
मेरी बूढ़ी हो चली दादी को
हो गयी थी सत्तर वर्ष पहले ही
कोरोना वायरस के आने की ख़बरवो कह...
वायरस की छाया में वसन्त
एक-एक पत्ता झड़ते हुए
दिन महीने वर्ष भी
झड़ते चले गए चुपचाप
फिर कभी अस्तित्व में थी
वह मधुर वासन्तिक गन्ध
क्या अभी भी बह रही थी
ठूँठ-सूखे पेड़ से
अपनी...
लॉकडाउन समय
1
इस समय सबका दुःख साझा है
सुख,
किसी ग़लत पते पर फँसा हुआ शायद
सबकी प्रार्थनाओं में उम्मीद का प्रभात
संशय के बादल से ढका पड़ा हैसमय
शोर को भेद...
रोटी की तस्वीर
यूँ तो रोटी किसी भी रूप में हो
सुन्दर लगती है
उसके पीछे की आग
चूल्हे की गन्ध और
बनाने वाले की छाप दिखायी नहीं देती
लेकिन होती हमेशा रोटी के...
तिथि दानी की कविताएँ
प्रलय के अनगिनत दिन
आज फिर एक डॉक्टर की मौत हुई
कल पाँच डॉक्टरों के मरने की ख़बरें आयीं
इनमें से एक स्थगित कर चुकी थी अपनी...
कोरोनावायरस और शिन्निन क्वायलो
कोरोनावायरस
फैला रहा है अपने अदृश्य पाँव
पहुँच चुका है वह
दुनिया के कई कोनों में
ताइवान में भी कुछ मामले सामने आ चुके हैंइन दिनों दुनिया के...
प्रवासी मज़दूर
मैंने कब माँगा था तुमसे
आकाश का बादल
धरती का कोना
सागर की लहर
हवा का झोंका
सिंहासन की धूल
पुरखों की राख
या अपने बच्चे के लिए दूधयह सब वर्जित...
पहली बार
इन दिनों
कैसी झूल रही गौरेया केबल तार पर
कैसा सीधा दौड़ रहा वह गली का डरपोक कुत्ता
कैसे लड़ पड़े बिल्ली के बच्चे चौराहे पर ही
कैसे...
कुमार मंगलम की कविताएँ
रात के आठ बजे
मैं सो रहा था उस वक़्त
बहुत बेहिसाब आदमी हूँ
सोने-जगने-खाने-पीने
का कोई नियत वक़्त नहीं है
ना ही वक़्त के अनुशासन में रहा हूँ कभीमैं सो...