‘Eklavya Ka Kata Angootha’, a poem by Alok Azad

वो जो हर बार तुम्हारे
न्यायालय की दीवारों पर
आज़ादी लिखने आता है

वो जो सड़कों पर
मुट्ठी को भींच
इंक़लाब के गाने गाता है

वो जो इतिहास के पन्नों में
लिपटी लहूलुहान
नाइंसाफ़ी को दिखलाता है

ऐ ज़ालिम सुन ले,
वो कोई और नहीं,
एकलव्य का कटा अँगूठा है!

यह भी पढ़ें:

द्वारका भारती की कविता ‘आज का एकलव्य’
पुनीत कुसुम की कविता ‘आधुनिक द्रोणाचार्य’
दयानन्द बटोही की कविता ‘द्रोणाचार्य सुनें, उनकी परम्पराएँ सुनें’

Book by Alok Azad:

Previous articleगौरव भारती की कविताएँ
Next articleनारी का न्याय
आलोक आज़ाद
I am PhD final year student in JNU and a passionate poet ... I have published a poetry book named- Daman ke khilaaf

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here